
इस महाविधालय का उद्घाटन ३० नवंबर १९७३ (शुक्रवार ) के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री केदार पाण्डेय ने किया। १९७४ में छात्रों का नामांकन शुरू हुआ और २० छात्रों से महाविधालय में शिक्षण कार्य प्रारम्भ हुआ। महाविधालय के प्रथम प्राचार्य डॉo सीताराम वर्मा , एमआरसीपी बनाये गये। श्री ऋषि कुमार पाठक एवं श्री रघुवंश भूषण ओझा ने अध्यापक के रूप में कार्यभार संभाला।
जून २०१३ में प्राचर्य की सेवा निर्वति के बाद डॉo रघुवंश प्रसाद ओझा नये प्राचर्य नियुक्त किये गये है। स्मरणीय है कि १९९० तक महाविधालय का नाम आयुर्वेद महाविधालय एवं चिकित्सालय था , लेकिन दाता के माता - पिता का नाम संयुक्त होने से इसका पुनः नामकरण श्री मोती सिंह जागेश्वरी आयुर्वेद महाविधालय एवं चिकित्सालय किया गया।
इसके वाद भारतीय केंर्द्रीय चिकित्सा परिषद इसे नया महाविधालय मानने लगी। परन्तु महाविधालय के स्पष्टीकरण के बाद ११ मई १९९९ को भारतीय केंर्द्रीय चिकित्सा परिषद ने निरिचन किया और ४० छात्रों के नामांकन की अनुमति प्रदान की।
महाविधालय के संचालन हेतु श्री रामसुन्दर दास की अध्यक्षता में श्री मोती मेमोरियल सोसइटी का गठन किया गया हैं, जिसका सरकार से पंजीयन है। भारतीय केंद्रीय चिकित्सा परिषद के मापदंड़ के अनुसार महाविधालय के विकास हेतु एक वृहत कार्य योजना बनाई गई है।
इस प्रकार इस एक ऐसे अस्पताल के रूप में विकसित किया जा रहा है जहाँ आयुर्वेद चिकित्सा के साथ - साथ शल्य चिकित्सा का भी आधुनिक प्रबंध किया जायेगा। इससे अध्य्यनरत छात्रों के आलावा बड़े पैमाने पर मरीजों को भी लाभ मिलेगा। यहाँ गरीब रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की व्यवस्था है। महिलाओ के सुरक्षित प्रसव और शिशुओ की देखभाल को उत्तम प्रबंध किया गया है। महाविधालय प्रांगण में एक औषधि उधान को विकसित किया गया है। ताकि औषधि निर्माण के लिए प्रचुर मात्रा में जड़ी - बूटियों का उत्पादन संभव हो। इनको बहार निर्यात भी किया जा सकता है।